कोई "लालू यादव" ऐसे ही नहीं बन जाता

कोई "लालू यादव" ऐसे ही नहीं बन जाता भारत के राजनीतिक इतिहास में कई नेताओं ने अपनी छवि बनाई, लेकिन कुछ ऐसे होते हैं जो जनता के दिलों में घर कर जाते हैं। लालू प्रसाद यादव ऐसे ही नेता रहे हैं, जिन्होंने अपनी अनोखी कार्यशैली, सामाजिक न्याय की राजनीति और आम जनता से सीधे जुड़ाव के कारण अलग पहचान बनाई। बिहार की राजनीति में उन्होंने कई ऐतिहासिक फैसले लिए, जो पहली बार किसी मुख्यमंत्री द्वारा किए गए थे। आइए, उनके कुछ ऐतिहासिक फैसलों पर एक नजर डालते हैं। 1. युवा सांसद के रूप में ऐतिहासिक प्रवेश (1977) 1977 में, मात्र 29 वर्ष की उम्र में, लालू यादव छपरा से लोकसभा चुनाव जीते और देश के सबसे युवा सांसदों में शामिल हुए। यह ऐतिहासिक इसलिए भी था क्योंकि वे छात्र नेता के रूप में जेल में रहते हुए हथकड़ी पहने नामांकन पत्र भरने आए थे और 3.75 लाख वोटों से भारी जीत दर्ज की। 2. मुख्यमंत्री पद की शपथ आम जनता के बीच (1990) 10 मार्च 1990 को लालू यादव ने एक नई परंपरा शुरू की। आमतौर पर मुख्यमंत्री की शपथ राजभवन में होती थी, लेकिन उन्होंने यह रस्म पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में हजारों लोगों के सामने पूरी की। यह जनता के प्रति उनके जुड़ाव को दर्शाता था। 3. सादगी की मिसाल - सीएम आवास छोड़कर चपरासी क्वार्टर में रहे, मुख्यमंत्री बनने के बाद, उन्होंने सरकारी बंगला और गाड़ी को छोड़ने का निर्णय लिया। वे अपने बड़े भाई के सरकारी चपरासी क्वार्टर में रहने लगे और साइकिल से चलने का फैसला किया। यह उनके सरल और जननेता होने का प्रमाण था। 4. "वोट का राज मतलब छोट का राज" सीएम बनने के बाद पहली बार जनता से संवाद करते हुए उन्होंने कहा – "वोट का राज मतलब छोट का राज। आप लोग मालिक हो...मालिकों पर अत्याचार नहीं चलेगा।" यह दलितों, पिछड़ों और गरीबों को मुख्यधारा में लाने के उनके मिशन का प्रतीक बना। 5. गरीबों के लिए रैन-बसेरों की व्यवस्था, पटना की प्रमुख सड़कों – बेली रोड, अशोक राजपथ, बुद्ध मार्ग और कदमकुआँ रोड पर रिक्शा चालकों, ठेला वालों और मजदूरों के लिए 300 रैन-बसेरे बनवाए, जिससे गरीब तबके को रात में सोने के लिए उचित स्थान मिल सके। 6. वंचित समाज के लिए ‘पटना क्लब’ खोलने की घोषणा उन्होंने घोषणा की कि पटना क्लब की 60% जगह वंचित तबकों के लिए आरक्षित होगी। गरीब तबके के लोग यहाँ शादी और अन्य कार्यक्रम कर सकते थे। उनके लिए क्लब में ताड़ी पीने और अपने पारंपरिक खाने की आजादी भी दी गई। 7. एक साल में 60,000 गरीबों के लिए आवास लालू यादव की सरकार ने अविभाजित बिहार के 600 ब्लॉकों में केवल एक साल के भीतर गरीबों के लिए 60,000 आवास बनवाए। यह देश के लिए एक ऐतिहासिक कदम था। 8. दलितों के लिए पटना के पॉश इलाकों में बहुमंजिला भवन राजा बाजार, शेखपुरा, लोहानीपुर, राजेंद्र नगर और कंकड़बाग जैसे संपन्न इलाकों में उन्होंने दलितों के लिए बहुमंजिला आवास बनवाए। इससे झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले दलित परिवारों को बेहतर जीवन मिला। 9. गरीबों को नकद हस्तांतरण की योजना शुरू की देश में पहली बार गरीबों को सीधे नकद हस्तांतरण की प्रक्रिया बिहार में शुरू की गई, जिससे सरकारी लाभ सीधे जरूरतमंदों तक पहुंचे। 10. ‘मुसहर’ समुदाय और चरवाहा विद्यालयों की शुरुआत मुसहर समुदाय के बच्चों के लिए 300 विशेष विद्यालय खोले गए। साथ ही, चरवाहों के बच्चों के लिए ‘चरवाहा विद्यालय’ की शुरुआत की गई, जहाँ वे अपने मवेशियों को साथ लेकर स्कूल आ सकते थे। इन स्कूलों में शिक्षा के साथ-साथ व्यावसायिक कौशल भी सिखाया जाता था। यह पूरे विश्व के लिए एक अनूठी पहल थी, हालांकि यह योजना दीर्घकालिक रूप से सफल नहीं हो सकी। 11. पुलिस सुधार – गरीबों को सम्मान देने की सख्त हिदायत लालू यादव ने पुलिस सुधार के तहत आदेश दिया कि – "पुलिस थाने आने वाले गरीबों को बैठने के लिए कहें, उनके साथ सम्मान से पेश आएं। यदि उनकी शिकायत सही हो, तो कार्यवाही करें। लेकिन उनके साथ दुर्व्यवहार न करें।" यह कदम गरीबों को न्याय दिलाने के लिए महत्वपूर्ण था। लालू प्रसाद यादव सिर्फ एक नेता नहीं, बल्कि एक आंदोलन थे। उन्होंने सामाजिक न्याय, गरीबों के उत्थान और हाशिए पर खड़े समुदायों को मुख्यधारा में लाने के लिए कई ऐतिहासिक फैसले लिए। उनकी नीतियाँ और कार्यशैली हमेशा चर्चा में रही। आलोचनाओं के बावजूद, उन्होंने बिहार की राजनीति में एक अमिट छाप छोड़ी, जिसे मिटाना आसान नहीं। "कोई लालू यादव ऐसे ही नहीं बन जाता!" #BreakingNews #TrendingNews #LatestNews #NewsUpdate #IndiaNews #WorldNews #TodayNews #ViralNews

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