शिक्षा का दीपक क्यों बुझ रहा है?" – एक सोचने योग्य सवाल.?

िक्षा का दीपक क्यों बुझ रहा है?" – एक सोचने योग्य सवाल आज हमारा देश एक ऐतिहासिक मोड़ पर खड़ा है। आज़बाद एक सपना देखा गया था – हर घर में शिक्षा का दीपक जले, हर बच्चा स्कूल जाए, और एक सशक्त, शिक्षित भारत का निर्माण हो। लेकिन आज हालात कुछ और ही कहानी कह रहे हैं। सरकार की तरफ से गांवों के सरकारी स्कूलों को “मर्ज़” (विलय) के नाम पर बंद किया जा रहा है। कारण बताया जाता है कि स्कूलों में 20 से कम बच्चे हैं। सवाल ये उठता है – क्या यही आखिरी उपाय है? क्या कोई दूरदर्शी योजना नहीं बन सकती थी? गांव के बच्चों की शिक्षा पर संकट ये फैसला सीधे-सीधे दूरदराज़ के गांवों में रहने वाले बच्चों की शिक्षा को संकट में डाल देता है। उन बच्चों के लिए जो पहले ही शिक्षा से दूर थे, अब स्कूल ही बंद हो जाने से उनके पास कोई विकल्प नहीं बचता। सरकारी आंकड़ों से परे, जमीनी सच्चाई ये है कि अब लोग अपने बच्चों को भारी फीस देकर प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाना पसंद कर रहे हैं। क्यों? क्यों छोड़ा जा रहा है सरकारी स्कूल? शिक्षकों की भारी कमी है। जो शिक्षक हैं भी, वे पढ़ाई पर ध्यान नहीं देते। स्कूलों में बुनियादी सुविधाएं नहीं हैं – न शौचालय, न पीने का पानी, न बैठने की व्यवस्था। कई जगहों पर जातिगत भेदभाव और धार्मिक पक्षपात बच्चों के मन में डर और हीन भावना भर देते हैं। सरकारी स्कूल में पढ़ने वाला बच्चा अक्सर खुद को दोयम दर्जे का समझता है, और यह हमारे भविष्य के साथ अन्याय है। शराब के ठेके हर चौराहे पर – क्या यही विकास है? एक तरफ तो स्कूलों को बच्चों की संख्या कम होने पर बंद किया जा रहा है, लेकिन दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश में 27,000 से ज़्यादा शराब के ठेके खोल दिए गए हैं। अब गांव के हर चौराहे, हर मोड़ पर शराब का ठेका मिल जाएगा। क्या सरकार के लिए राजस्व (revenue) बढ़ाना ही सबसे बड़ा मकसद रह गया है? क्या शराब से कमाए गए पैसे से ही हम राष्ट्र का निर्माण करेंगे? मीडिया और धर्म की राजनीति टीवी चैनलों और सोशल मीडिया पर अब दिन-रात सिर्फ हिंदू-मुस्लिम,मंदिर-मस्जिद, जाति और धर्म के झगड़े दिखाई देते हैं। असली मुद्दे – शिक्षा, स्वास्थ्य, बेरोज़गारी, महिला सुरक्षा – कहीं गुम हो गए हैं। मीडिया को अब देश के विकास से कोई लेना-देना नहीं। TRP की होड़ में वो बस आग लगाना जानती है। अब क्या किया जाए? गांव के स्कूलों को बंद करने की बजाय सुधार किया जाए। स्कूलों में स्थायी और प्रशिक्षित शिक्षकों की नियुक्ति हो। स्थानीय पंचायत और समाजसेवी संस्थाओं को स्कूल संचालन में जोड़ा जाए। शराब के ठेकों की जगह पुस्तकालय, स्पोर्ट्स क्लब और स्किल सेंटर खोले जाएं। सरकारी स्कूलों की गुणवत्ता और विश्वास को बहाल करने के लिए जन अभियान चलाया जाए। अंत में – शिक्षा ही राष्ट्र का भविष्य है। अगर हमने आज गांवों के स्कूल बंद कर दिए, तो कल गांवों से उजाला हमेशा के लिए चला जाएगा। शिक्षा का दीपक बुझ गया, तो देश की रोशनी भी बुझ जाएगी। समय है – हम सब एक साथ खड़े हों और कहें: "शिक्षा बचाओ – गांव बचाओ – देश बचाओ!" ✍️ स्वतंत्र लेखक / संपादक दुर्गेश यादव

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