शनिवार, 12 जुलाई 2025
📚“शिक्षा की चुप्पी – जब स्कूल खामोश हो जाते हैं.
📚“शिक्षा की चुप्पी – जब स्कूल खामोश हो जाते हैं..."
✍️ 'By Durgesh Yadav'
"जब समाज मंदिर-मस्जिद में उलझा हो, और स्कूलों पर ताले लगे हों, तो कोई क्रांति नहीं आती — सिर्फ अंधेरा फैलता है।"
आज हम एक ऐसे दौर में हैं जहाँ देश तकनीक, अंतरिक्ष और वैश्विक नेतृत्व की बातें कर रहा है।
लेकिन ज़रा पीछे मुड़िए... गाँव की ओर देखिए...
जहाँ स्कूल हैं — पर बच्चे नहीं।
जहाँ शिक्षक हैं — पर पढ़ाई नहीं।
जहाँ बिल्डिंग है — पर माहौल नहीं।
🔍सवाल यह नहीं कि स्कूल हैं या नहीं, सवाल यह है कि क्या वहाँ ‘शिक्षा’ है?
हर चौराहे पर शराब की दुकान सजती है,
युवा धर्म के नारों में उलझे हैं,
और स्कूल...?
वो या तो बंद पड़े हैं, या नाम मात्र के लिए चल रहे हैं।
📉क्या वजह है कि आज गरीब माता-पिता भी महंगे प्राइवेट स्कूलों की ओर भाग रहे हैं?
₹1500–12000 तक की मनमानी फीस,
किताबें, ड्रेस, ट्रांसपोर्ट का बोझ,
फिर भी वे अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में नहीं भेजना चाहते।
क्यों?
क्योंकि उन्हें स्कूल की इमारत नहीं, शिक्षा की गुणवत्ता चाहिए।
और यही गुणवत्ता उन्हें सरकारी स्कूल में नहीं मिल रही।
🎯 सबूत हमारे ही सिस्टम में छिपा है:
👉 नवोदय विद्यालय
👉 केंद्रीय विद्यालय
ये भी तो सरकारी स्कूल हैं।
फिर क्यों यहाँ बच्चे टूटकर प्रवेश चाहते हैं?
क्योंकि वहाँ:
बेहतर शिक्षक हैं,
बेहतर संसाधन हैं,
और सबसे महत्वपूर्ण — नियत और निगरानी है।
🧩तो क्या बाकी सरकारी स्कूलों का सुधरना असंभव है?
बिलकुल नहीं।
समस्या यह नहीं कि पैसा नहीं है,
समस्या है — प्राथमिकता नहीं है।
सरकारें शिक्षा को "योजना" की तरह देखती हैं,
जबकि यह तो राष्ट्र निर्माण की नींव है।
📌 गांवों के स्कूलों की उदासीनता का कारण एक ही है — वहां पढ़ने वाले बच्चे ‘सिस्टम’ के नहीं हैं।
* न वो किसी बड़े अफसर के बच्चे हैं,
* न किसी मंत्री के,
* और न किसी अमीर के।
वे गरीब हैं।
उनके पास विकल्प नहीं है — इसलिए उनकी आवाज़ भी नहीं है।
✅ समाधान की ओर पहला कदम – सामूहिक चेतना और भागीदारी:
1.हर गाँव में शिक्षा निगरानी समिति बने – जो मासिक रिपोर्टिंग करे।
2. शिक्षकों की उपस्थिति और गुणवत्ता का स्वतंत्र ऑडिट हो।
3.जनप्रतिनिधियों को जवाबदेह बनाया जाए — हर ब्लॉक में शिक्षा रिपोर्ट कार्ड बने।
4.पब्लिक-प्राइवेट भागीदारी से संसाधन जोड़े जाएं।
🔔 अब भी वक़्त है...
> हम अगर अब भी नहीं चेते,
> तो अगली पीढ़ी केवल मजदूर, ड्राइवर और नौकर बनकर रह जाएगी,
> और हम सोचते रह जाएंगे कि "हमने तो स्कूल खुलवाया था…"
शिक्षा का सवाल अब केवल नीति का नहीं, न्याय का है।
🙏 आइए, एकजुट होकर सवाल पूछें, आवाज़ उठाएं और परिवर्तन की शुरुआत करें।
क्योंकि…
📝 “जब आखिरी स्कूल बंद हो जाएगा,
तब हमें एहसास होगा कि मंदिर और मस्जिद की बहसें हमें कहीं नहीं ले गईं।”
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