मंगलवार, 21 अक्टूबर 2025

राजनीति के मोहरे नहीं, बदलाव के वाहक बनें — यूपी-बिहार के युवाओं का भविष्य

“कदम मिलाओ नौजवानो, देश की डगर तुम्हारे पैरों से तय होगी।” भारत की युवा शक्ति दुनिया की सबसे बड़ी है, और उसका केंद्र है — उत्तर प्रदेश और बिहार। यह वही धरती है जहाँ गांधी, लोहिया और जयप्रकाश जैसे क्रांतिकारी विचारों ने जन्म लिया। लेकिन आज यही भूमि एक दर्दनाक सच्चाई झेल रही है — युवाओं का राजनीतिक इस्तेमाल। रैलियों की भीड़ में खोते सपने, वादों की धूल में दबती उम्मीदें, और डिग्रियों के बावजूद अधूरे करियर — यही आज के युवाओं की असल कहानी है। 🎓 शिक्षा मिली, पर दिशा खो गई यूपी और बिहार में हर कस्बा “कोचिंग नगरी” बन चुका है। लाखों युवा प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करते हैं, पर सफलता कुछ गिने-चुने हाथों में जाती है। बाकी के हिस्से में रह जाता है — निराशा, असुरक्षा और बेरोज़गारी। “विद्या विवादाय धनं मदाय, शक्ति: परेषां परिपीडनाय।” (जब शिक्षा विवेक न दे, तो वह केवल अहंकार बन जाती है।) शिक्षा अब केवल परीक्षा पास करने का माध्यम बन गई है। विचार, विवेक और जीवन-दर्शन जैसे शब्द बस किताबों में रह गए हैं। पर राजनीति जानती है कि दिशाहीन भीड़ सबसे आसान लक्ष्य होती है। और यही से शुरू होता है युवाओं के इस्तेमाल का खेल। जब नौजवान नारा बन गया हर चुनावी मौसम में “युवा” सबसे ताकतवर शब्द बन जाता है। राजनीतिक मंचों पर भाषण होते हैं — “युवा देश का भविष्य हैं” पर सच्चाई यह है कि वही युवा पोस्टर चिपकाने और झंडा ढोने तक सीमित रह जाते हैं। “रामू कल तक कोचिंग जाता था, आज झंडा उठाता है, सपनों के बदले नारों की गूंज में खो जाता है।” राजनीति ने युवाओं को वोट बैंक में तब्दील कर दिया है। वो मुद्दों से नहीं, नारों से आकर्षित होते हैं। जाति, धर्म और भावनाएँ उनके विवेक पर हावी हो जाती हैं। और नतीजा? — चुनाव के बाद वही युवा फिर बेरोज़गार, फिर निराश। 📱 सोशल मीडिया का नया रणक्षेत्र पहले राजनीति गलियों और चौपालों में होती थी, अब वो मोबाइल की स्क्रीन पर खेली जा रही है। फेक न्यूज़, हेट पोस्ट और ट्रेंड्स के जरिए युवाओं की सोच को नियंत्रित किया जा रहा है। राजनीतिक दल अब भीड़ नहीं जुटाते, वे “डिजिटल भीड़” बनाते हैं — जो लाइक करती है, शेयर करती है, और बिना सोचे मान लेती है। “सूचना के युग में विवेक सबसे बड़ा अस्त्र है।” युवा यह नहीं समझ पा रहे कि वो सूचना के मालिक नहीं, बल्कि डेटा के उत्पाद बन चुके हैं। 🏠 सपनों का बोझ और समाज का दबाव यूपी-बिहार का हर घर एक सरकारी अधिकारी पैदा करना चाहता है। डॉक्टर, इंजीनियर, आईएएस — यही सफलता के प्रतीक हैं। लेकिन हर बच्चा इस साँचे में नहीं ढलता। जो कला, खेल या व्यवसाय की ओर झुकता है, उसे समाज “बेकार” या “भटका हुआ” कह देता है। “मन चंगा तो कठोर पत्थर भी मंदिर बनि जाय, पर दबाव में युवा का मन हर ओर से टूटि जाय।” यह सामाजिक सोच युवाओं की सृजनशीलता को कुचल रही है। जिस समाज ने सपनों की विविधता को स्वीकार नहीं किया, वह विकास में भी पिछड़ जाता है। 💡 क्या है समाधान? अब वक्त है कि युवाओं को समस्या नहीं, समाधान का केंद्र बनाया जाए। राजनीति में उनका इस्तेमाल नहीं, उनकी भागीदारी हो। 1. शिक्षा में सुधार और कौशल विकास स्कूल और कॉलेज केवल डिग्री न दें, बल्कि जीवन जीने की शिक्षा दें। Vocational Training, Skill Development, और Digital Literacy को अनिवार्य किया जाए। 2. राजनीतिक साक्षरता हर विश्वविद्यालय में युवाओं के लिए “राजनीतिक जागरूकता सत्र” हो, जहाँ उन्हें सिखाया जाए कि वोट केवल अधिकार नहीं, जिम्मेदारी है। 3. स्थानीय उद्योगों को बढ़ावा दुग्ध, कपड़ा, कृषि-प्रसंस्करण और डिजिटल सेवाओं जैसे स्थानीय उद्योगों से युवाओं को जोड़ा जाए। “Start-up Gaon” मॉडल से गाँव-गाँव रोजगार पैदा किया जा सकता है। 4. कैरियर और मानसिक परामर्श बेरोज़गारी और असफलता से जूझते युवाओं के लिए हर जिले में “Career & Mental Health Centres” होने चाहिएं। 5. नीति निर्माण में युवाओं की भागीदारी पंचायत, नगर परिषद और जिला स्तर पर “युवा सलाहकार समितियाँ” बनाई जाएँ, ताकि युवा खुद अपनी नीतियाँ गढ़ें। 🌅 आशा की सुबह – जब युवा खुद जागेगा “उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।” (सफलता केवल संकल्प से नहीं, परिश्रम से मिलती है।) आज भी उम्मीद बाकी है। क्योंकि बदलाव की ताकत राजनीति में नहीं, बल्कि उसी युवा में है जिसने इसे संभव बनाया है। जब वह अपनी दिशा खुद तय करेगा, तब कोई उसे इस्तेमाल नहीं कर पाएगा। जब वह सोचने, सवाल करने और सपने देखने लगेगा, तब यूपी-बिहार के युवाओं का भविष्य नहीं, पूरे देश का भविष्य बदल जाएगा। ✍️ निष्कर्ष: परिवर्तन तुम्हारे हाथों में है युवा अब यह तय करें — क्या वे केवल झंडा उठाएँगे या नया विचार गढ़ेंगे? क्या वे भीड़ का हिस्सा बनेंगे या परिवर्तन का चेहरा? “एक दीप सौं सौ दीप जलै, तम हरि जावै सारा, संग-संग चलो युवा सखा, यही परिवर्तन हमारा।” यूपी और बिहार के युवाओं के पास सबसे बड़ी ताकत है — उनकी संख्या, उनकी सोच और उनका साहस। बस जरूरत है उन्हें किसी पार्टी नहीं, खुद पर विश्वास करने की। जब युवा “भीड़” से “नेता” बनेगा, तब राजनीति नहीं, समाज बदलेगा। लेखक: ✍️ दुर्गेश कुमार यादव (स्वतंत्र लेखक एवं सामाजिक विषयों पर विचारक)

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