सोमवार, 29 सितंबर 2025
सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी: लद्दाख की आग में केंद्र की साजिश?
लेखक: दुर्गेश यादव
लद्दाख की बर्फीली वादियां, जो कभी पर्यटकों की चहेती जगह रही हैं, आज आंदोलन की आग में जल रही हैं। 26 सितंबर 2025 को पर्यावरण कार्यकर्ता और शिक्षा सुधारक सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी ने पूरे देश को हिला दिया है। राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (एनएसए) के तहत गिरफ्तार किए गए वांगचुक को राजस्थान के जोधपुर जेल भेज दिया गया। यह घटना लद्दाख में राज्यhood और संविधान की छठी अनुसूची की मांगों से जुड़े हिंसक प्रदर्शनों के ठीक दो दिन बाद हुई, जहां चार लोग मारे गए और दर्जनों घायल हुए। क्या यह गिरफ्तारी शांतिपूर्ण आंदोलन को कुचलने की कोशिश है? या केंद्र सरकार की 'राष्ट्रीय सुरक्षा' की आड़ में राजनीतिक साजिश? इस संपादकीय में हम इन सवालों का तार्किक विश्लेषण करेंगे, ताकि लोकतंत्र की इस परीक्षा को समझा जा सके।
लद्दाख का आंदोलन: वादों का बोझ और युवाओं की हताशा
लद्दाख का यह आंदोलन कोई नई बात नहीं। 2019 में जब केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटा, तो लद्दाख को अलग यूटिलिटी (UT) बनाया गया। शुरू में स्थानीय लोगों ने इसका स्वागत किया, क्योंकि वे कश्मीर की छत्रछाया से मुक्त होना चाहते थे। लेकिन जल्द ही वादे टूटने लगे। भाजपा ने 2020 के लेह हिल काउंसिल चुनावों में छठी अनुसूची का वादा किया, जो आदिवासी क्षेत्रों को विशेष संरक्षण देती है। साथ ही राज्यhood, लेह-कारगिल के लिए अलग संसदीय सीटें, स्थानीय नौकरियों और जमीन पर अधिकार की मांगें उठीं।
सोनम वांगचुक, जो '3 इडियट्स' फिल्म के प्रेरणा स्रोत भी हैं, इन मांगों के चेहरे बने। उन्होंने 10 सितंबर से 14 दिनों का अनशन शुरू किया। लेह एपेक्स बॉडी (LAB) और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (KDA) के नेतृत्व में यह आंदोलन चला। लेकिन 24 सितंबर को प्रदर्शन हिंसक हो गए। प्रदर्शनकारियों ने सीआरपीएफ वाहनों को आग लगा दी, पुलिस ने लाठीचार्ज, आंसू गैस और गोलीबारी की। चार नागरिक मारे गए, 70 से ज्यादा घायल। अनशन के दौरान दो प्रदर्शनकारियों की हालत बिगड़ने पर हड़ताल बंद हुई, लेकिन तनाव बढ़ा। केंद्र ने इंटरनेट काट दिया, कर्फ्यू लगा दिया।
यह हिंसा युवाओं की हताशा का प्रतीक है। लद्दाख में बेरोजगारी चरम पर है। स्नातक युवा सरकारी नौकरियों के लिए तरस रहे हैं, जबकि पर्यटन और पर्यावरण संकट से अर्थव्यवस्था चरमरा रही है। वांगचुक ने इसे 'जन जेड रेवोल्यूशन' कहा, नेपाल के आंदोलनों और अरब स्प्रिंग का जिक्र किया। क्या यह उकसावा था? या हताशा का इजहार? केंद्र सरकार का कहना है कि वांगचुक की 'उकसाने वाली' स्पीच ने हिंसा भड़काई। लेकिन वांगचुक ने आरोपों से इनकार किया और कहा कि यह सरकार की नाकामी का नतीजा है।
गिरफ्तारी का राजनीतिक आयाम: एनएसए की काली छाया
गिरफ्तारी का तरीका सवालों से भरा है। वांगचुक को लेह में डीजीपी एस.डी. जामवाल की अगुवाई में गिरफ्तार किया गया, ठीक उस प्रेस कॉन्फ्रेंस से पहले जो वे देने वाले थे। एनएसए के तहत बिना मुकदमे के हिरासत, जोधपुर जेल में स्थानांतरण – यह सब 'राष्ट्रीय सुरक्षा' का हवाला देकर किया गया। गृह मंत्रालय ने उनके एनजीओ 'स्टूडेंट्स एजुकेशनल एंड कल्चरल मूवमेंट ऑफ लद्दाख' (SECMOL) का एफसीआरए लाइसेंस रद्द कर दिया, आरोप लगाया कि विदेशी फंड का दुरुपयोग हुआ। साथ ही, हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ अल्टरनेटिव्स लद्दाख (HIAL) पर भी 1.5 करोड़ रुपये के विदेशी फंड के बिना रजिस्ट्रेशन का आरोप।
लेकिन असली विवाद राजनीतिक है। लद्दाख डीजीपी ने कहा कि वांगचुक के पाकिस्तान कनेक्शन की जांच हो रही है। एक पाकिस्तानी PIO को गिरफ्तार किया गया, जो कथित तौर पर वांगचुक से संपर्क में था। वांगचुक ने पाकिस्तान के 'डॉन' इवेंट में हिस्सा लिया था। यह आरोप 'पाकिस्तान का हाथ' वाली पुरानी स्क्रिप्ट लगती है। विपक्ष का कहना है कि यह ध्यान भटकाने की चाल है। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा, "यह भाजपा की कानून-व्यवस्था की नाकामी को छिपाने की कोशिश है।" लद्दाख कांग्रेस प्रमुख नवांग रिगजिन जोरा ने वांगचुक को आंदोलन का चेहरा बताया और गिरफ्तारी को 'स्कैपगोट' कहा।
आम आदमी पार्टी (AAP) ने इसे 'तानाशाही' करार दिया। अरविंद केजरीवाल ने कहा, "लोकतंत्र में आवाज दबाना गुनाह है।" सीपीआई(एमएल) लिबरेशन ने इसे 'विच हंट' कहा और अनुच्छेद 370 हटाने को 'कॉर्पोरेट लूट' का हथियार बताया। सोशल मीडिया पर #ReleaseSonamWangchuk ट्रेंड कर रहा है। ट्विटर पर यूजर्स वांगचुक को 'देशभक्त' बता रहे हैं, जबकि कुछ पाकिस्तान कनेक्शन पर सवाल उठा रहे हैं। राहुल गांधी ने चुप्पी तोड़ी और केंद्र व आरएसएस पर निशाना साधा।
यह गिरफ्तारी राजनीतिक गठजोड़ को भी प्रभावित कर रही है। LAB ने 29 सितंबर को दिल्ली जाने वाली अपनी डेलिगेशन रद्द कर दी, क्योंकि प्रदर्शनकारियों को 'राष्ट्र-विरोधी' कहा गया। 6 अक्टूबर को होने वाली बातचीत पर संकट आ गया। लद्दाख, जहां बौद्ध और मुस्लिम समुदाय शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व रखते हैं, अब ध्रुवीकरण का शिकार हो रहा है।
केंद्र की रणनीति: संवाद क्यों टूटा?
केंद्र सरकार का तर्क है कि वांगचुक की गतिविधियां 'सुरक्षा के लिए खतरा' हैं। लेह प्रशासन ने कहा, "उनकी कार्रवाइयों से शांति भंग हो रही थी।" लेकिन तथ्य कुछ और कहते हैं। लद्दाख में पर्यटन बुरी तरह प्रभावित हुआ है। कर्फ्यू और इंटरनेट बंदी से रद्दीकरण बढ़ गए, पर्यटक फंस गए। यह आर्थिक नुकसान केंद्र को भी चुभ रहा होगा। फिर गिरफ्तारी क्यों? क्या यह कॉर्पोरेट हितों की रक्षा है? लद्दाख के संसाधनों पर नजर है – खनन, पर्यटन, सीमा सुरक्षा। वांगचुक का पर्यावरण आंदोलन इनके खिलाफ खड़ा है।
राजनीतिक रूप से, यह भाजपा के लिए जोखिम भरा है। 2019 में लद्दाख ने भाजपा को समर्थन दिया, लेकिन अब स्थानीय नेता जैसे हाजी हनीफा गिरफ्तारी की निंदा कर रहे हैं। विपक्ष इसे 'लोकतंत्र की हत्या' बता रहा है। अगर पाकिस्तान कनेक्शन साबित हो गया, तो आंदोलन कमजोर पड़ सकता है। लेकिन अभी यह बिना सबूत का आरोप लगता है। एडीजीपी ने कथित तौर पर स्वीकार किया कि गिरफ्तारी डिफेंस मिनिस्ट्री के दबाव में हुई।
निष्कर्ष: संवाद ही रास्ता, दमन नहीं
सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी लद्दाख के आंदोलन को दबाने की बजाय और भड़का रही है। जयपुर, दिल्ली में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। यह राजनीतिक गठजोड़ का संकट है – केंद्र बनाम स्थानीय। एनएसए जैसे कानून लोकतंत्र के लिए खतरा हैं। सरकार को वांगचुक को रिहा करना चाहिए, LAB-KDA से बातचीत बहाल करनी चाहिए। लद्दाख के युवाओं की आवाज दबाने से समस्या हल नहीं होगी, बल्कि चीन-पाकिस्तान सीमा पर असंतोष बढ़ेगा।
भारत का लोकतंत्र मजबूत तभी होगा, जब केंद्र वादों को पूरा करे। छठी अनुसूची लागू हो, राज्यhood पर विचार हो। वांगचुक जैसे कार्यकर्ता देशभक्त हैं, न कि दुश्मन। उनकी रिहाई ही शांति का पहला कदम होगी। अन्यथा, लद्दाख की बर्फीली चोटियां गवाही देंगी कि कैसे एक आंदोलन ने राजनीतिक भूलों को उजागर कर दिया।
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