लैटरल एंट्री पारदर्शिता और आरक्षण की चुनौती!

लैटरल एंट्री पर विवाद: पारदर्शिता और आरक्षण की चुनौती केंद्रीय लोकसेवा आयोग (UPSC) द्वारा हाल ही में जारी किए गए लैटरल एंट्री के तहत 45 पदों की नियुक्तियों के विज्ञापन ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है। कांग्रेस, RJD, समाजवादी पार्टी और BSP जैसे प्रमुख विपक्षी दलों ने इस विज्ञापन पर तीखा विरोध जताया है, खासकर आरक्षण की कमी को लेकर. लैटरल एंट्री की पृष्ठभूमि लैटरल एंट्री की नीति नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली NDA सरकार के पहले कार्यकाल में शुरू की गई थी। इसका उद्देश्य प्रशासनिक सेवाओं में विशेषज्ञता और नई प्रतिभाओं को शामिल करना था। इस नीति के तहत पहले भी कई दौर की नियुक्तियां हो चुकी हैं, लेकिन इस बार 45 पदों की संख्या ने विवाद को और बढ़ा दिया है. विरोधी दलों की आपत्ति विपक्षी दलों का मुख्य आरोप है कि इन नियुक्तियों में SC/ST और OBC समूहों के लिए आरक्षण की कोई व्यवस्था नहीं की गई है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने इसे "सुनियोजित साजिश" करार दिया है, जिससे आरक्षित वर्गों को बाहर रखा जा सके. उनका कहना है कि यह संविधान के आरक्षण प्रावधानों का उल्लंघन है और सरकार जानबूझकर आरक्षण को दरकिनार कर रही है. पारदर्शिता और निष्पक्षता की मांग विपक्षी दलों का कहना है कि लैटरल एंट्री प्रक्रिया को पारदर्शी और निष्पक्ष बनाया जाना चाहिए। उनका मानना है कि इस प्रक्रिया में आरक्षण का प्रावधान होना चाहिए ताकि सभी वर्गों को समान अवसर मिल सके. निष्कर्ष लैटरल एंट्री की नीति का उद्देश्य प्रशासनिक सेवाओं में विशेषज्ञता और नई प्रतिभाओं को शामिल करना है, लेकिन इसे पारदर्शी और निष्पक्ष बनाना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। आरक्षण के प्रावधानों को ध्यान में रखते हुए इस नीति को लागू करना चाहिए ताकि सभी वर्गों को समान अवसर मिल सके और विवादों से बचा जा सके। क्या आपको लगता है कि लैटरल एंट्री की नीति में सुधार की जरूरत है? आपकी राय क्या है

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