"भारतीय समाज: बिखराव की ओर और आंतरिक युद्ध के साए में"

भारतीय समाज, जो कभी विविधता में एकता का आदर्श था, आज एक गंभीर बिखराव और आंतरिक संघर्ष से गुजर रहा है। इस बिखराव का सबसे कड़वा प्रतिबिंब हमें सोशल मीडिया पर दिखता है, जहां विचारों की खुली अदला-बदली की जगह, जातीय और राजनीतिक संकीर्णता ने ले ली है। विशेष रूप से जब कोई भयावह घटना, जैसे कि बलात्कार, सामने आती है, तो समाज का यह विभाजन और भी स्पष्ट हो जाता है। ऐसी घटनाओं पर सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया देने वाले लोग, पहले अपराध की गंभीरता पर विचार नहीं करते, बल्कि यह देखते हैं कि पीड़ित और अपराधी किस जाति, धर्म या वर्ग से ताल्लुक रखते हैं। इसके बाद, यह देखा जाता है कि घटना किस राज्य में हुई और वहां किस राजनीतिक दल की सरकार है। इस जातीय और राजनीतिक चश्मे से देखी गई घटनाओं में संवेदनाएं कहीं खो जाती हैं। जो सवाल उठाए जाते हैं, वे न्याय और करुणा से ज्यादा, राजनीतिक और जातीय लाभ-हानि पर केंद्रित होते हैं। समाज में इस विभाजन को बढ़ावा देने में हमारे राजनीतिक नेता भी पीछे नहीं हैं। वे अपनी राजनीतिक ताकत बढ़ाने के लिए इस बिखराव को और गहरा करते हैं। आईटी सेल के माध्यम से वीडियो और खबरों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया जाता है, जिससे आम जनता के मन में भ्रम और गुस्सा पैदा किया जा सके। यह रणनीति समाज को बांटने और आपसी विश्वास को कमजोर करने का काम करती है, जिससे सामाजिक ताने-बाने में दरारें और गहरी हो जाती हैं। सबसे चिंताजनक बात यह है कि इस विभाजनकारी माहौल में इंसानियत और संवेदनशीलता का स्थान जातीयता और राजनीति ने ले लिया है। अब घटनाओं पर लोगों की प्रतिक्रियाएं इस बात पर निर्भर करती हैं कि उनका जातीय या राजनीतिक समूह इससे कैसे प्रभावित होगा। पीड़ित की पीड़ा और न्याय की पुकार कहीं दबकर रह जाती है, और समाज में एक ठंडी उदासीनता पसर जाती है। अगर हम इस प्रवृत्ति को समय रहते नहीं रोकते, तो यह बिखराव और आंतरिक युद्ध हमारे समाज को अंदर से कमजोर कर देगा। हमें यह समझना होगा कि किसी भी घटना को उसकी सच्चाई और मानवीयता के आधार पर देखना चाहिए, न कि जातीय और राजनीतिक चश्मे से। केवल तभी हम एक सच्चे, संवेदनशील, और एकजुट समाज का निर्माण कर सकते हैं, जहाँ हर व्यक्ति की पीड़ा को समझा और उसका समाधान खोजा जा सके। यह वक्त है, जब हमें अपनी विचारधाराओं और पूर्वाग्रहों से ऊपर उठकर, इंसानियत और संवेदनशीलता को प्राथमिकता देनी होगी। यही एक रास्ता है, जो हमें इस बिखरते हुए समाज को फिर से एकजुट करने और एक मजबूत, न्यायपूर्ण भारत का निर्माण करने में मदद करेगा। 🖋️ दुर्गेश यादव!

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