संपादकीय: बेड़ियों में जकड़े सपने – प्रवासी मजदूरों का अपमान और मोदी की चुप्पी!

संपादकीय: बेड़ियों में जकड़े सपने – प्रवासी मजदूरों का अपमान और मोदी की चुप्पी.! वह वीडियो जिसने हर भारतीय का सिर झुका दिया—हमारे अपने प्रवासी मजदूर, जो कभी अपनी मेहनत से अमेरिका की इमारतें खड़ी कर रहे थे, आज उन्हीं हाथों को बेड़ियों में जकड़कर भेजा जा रहा है। चेहरों पर लाचारी, आंखों में बेबसी, और पैरों में जंजीरें—यह सिर्फ कुछ लोगों का अपमान नहीं, बल्कि पूरे भारत की गरिमा पर चोट है। अमेरिकी राजनीति या भारतीयों का अपमान? डोनाल्ड ट्रंप, जो फिर से अमेरिकी राष्ट्रपति बनने की दौड़ में हैं, हमेशा से प्रवासियों को बोझ मानते रहे हैं। उनका राजनीतिक खेल साफ है—अपने कट्टर समर्थकों को दिखाना कि वे "गैर-अमेरिकियों" से अमेरिका को मुक्त कर रहे हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या भारतीय मजदूरों को अपराधियों की तरह जंजीरों में बांधकर भेजना सिर्फ एक कानूनी प्रक्रिया थी, या जानबूझकर किया गया एक अपमान? क्या यह भारत की अंतरराष्ट्रीय साख को कमजोर करने की कोशिश थी? मोदी की चुप्पी – कूटनीति या बेबसी? सबसे दुखद पहलू यह है कि इस शर्मनाक घटना पर भारत सरकार, विदेश मंत्रालय और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूरी तरह खामोश हैं। वही प्रधानमंत्री, जिन्होंने ट्रंप के स्वागत में "नमस्ते ट्रंप" जैसा भव्य आयोजन किया था, आज अपने ही नागरिकों की बेड़ियों पर कुछ नहीं बोल रहे। क्या यह चुप्पी कूटनीतिक मजबूरी है, या फिर सरकार को यह लगता है कि कुछ गरीब प्रवासी मजदूरों का अपमान कोई बड़ा मुद्दा नहीं? क्या प्रवासी भारतीय सिर्फ ‘डॉलर भेजने’ के लिए हैं? यह सवाल हमें खुद से पूछना होगा। जब प्रवासी भारतीय अपनी मेहनत से अरबों डॉलर की कमाई कर भारत भेजते हैं, तब उन्हें "भारत का सच्चा दूत" कहा जाता है। लेकिन जब उन पर संकट आता है, तब हम उन्हें बेसहारा छोड़ देते हैं। यह कैसी नीति है जो प्रवासियों की कमाई को तो सराहती है, लेकिन उनके सम्मान की रक्षा नहीं कर सकती? सरकार को क्या करना चाहिए? अमेरिका से कड़ा विरोध जताया जाए – भारत को अमेरिका से आधिकारिक रूप से जवाब मांगना चाहिए कि भारतीय मजदूरों के साथ इस तरह का अमानवीय व्यवहार क्यों किया गया। प्रवासियों की सुरक्षा सुनिश्चित हो – सरकार को यह नीति बनानी होगी कि भविष्य में किसी भी भारतीय को विदेशों में अपमान का सामना न करना पड़े। अंतरराष्ट्रीय मंच पर आवाज उठानी होगी – भारत को वैश्विक स्तर पर प्रवासियों के अधिकारों के लिए एक मजबूत पक्ष रखना होगा। अपने नागरिकों को प्राथमिकता देनी होगी – भारत को यह दिखाना होगा कि वह अपने नागरिकों के सम्मान की रक्षा के लिए किसी भी देश के सामने खड़ा हो सकता है। निष्कर्ष: क्या भारत अब भी ‘विश्वगुरु’ है? यह घटना हमें याद दिलाती है कि सिर्फ मजबूत अर्थव्यवस्था या बड़ी जनसंख्या होने से कोई देश महान नहीं बनता। महान वह होता है जो अपने नागरिकों के सम्मान के लिए खड़ा हो सके। अगर आज भारत अपनी चुप्पी नहीं तोड़ेगा, तो यह चुप्पी सिर्फ मजदूरों का ही नहीं, पूरे देश का अपमान बन जाएगी। क्या हम इस अपमान को सह लेंगे, या फिर अपने प्रवासियों के हक के लिए आवाज उठाएंगे? जवाब हमें ही देना होगा। (दुर्गेश यादव ✍️)

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