मंगलवार, 26 अगस्त 2025
टैरिफ़ संकट : उप्र के निर्यातक तबाही के मुहाने पर कारीगरों और उद्योगों पर मंडराता ख़तरा
📰संपादकीय विशेष
उत्तर प्रदेश न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया में अपनी कला, शिल्प और उद्योगों की विशिष्ट पहचान रखता है। बनारस की साड़ी, मुरादाबाद का पीतल, अलीगढ़ के ताले, भदोही का कालीन, कन्नौज का इत्र, सहारनपुर का लकड़ी का काम, लखनऊ की चिकनकारी, वाराणसी की ज़री-जरदोज़ी और गोरखपुर का टेराकोटा—ये सब मिलकर न सिर्फ प्रदेश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं, बल्कि करोड़ों परिवारों की आजीविका का साधन भी।
लेकिन आज वही उद्योग-समुदाय टैरिफ़ संकट की मार से कराह रहा है। विदेशी बाज़ारों में लगाई गई प्रतिशोधात्मक टैरिफ़ और केंद्र सरकार की नीतिगत असफलताओं ने उत्तर प्रदेश के निर्यातकों को कठिन मोड़ पर खड़ा कर दिया है। जहाज़ों में माल फँसा हुआ है, भुगतान चक्र ठप हो गया है, और सप्लायर्स से लेकर ट्रांसपोर्ट सेक्टर तक हर कोई नुकसान झेल रहा है।
संकट की जड़ : गलत नीतियाँ
विदेशी बाज़ारों में प्रतिशोधात्मक टैरिफ़
कूटनीतिक स्तर पर समाधान की विफलता
छोटे कुटीर और लघु उद्योगों पर सबसे ज्यादा असर
निर्यातकों का कहना है कि मौजूदा संकट अचानक नहीं आया। यह सरकार की नीतिगत कमियों का परिणाम है। जब विदेशी देशों ने भारत के उत्पादों पर टैरिफ़ थोपे, तो कूटनीतिक स्तर पर पहल होनी चाहिए थी। लेकिन सरकार ने समय रहते वैकल्पिक समाधान नहीं खोजा।
अरबों-खरबों का माल विदेशी जहाज़ों और बंदरगाहों में अटका
🔹 पेमेंट चक्र ठप, निर्यातकों पर पूँजी संकट
🔹 ODOP योजना नाकाम, राहत के नाम पर केवल प्रचार
🔹 कारीगर और शिल्पकार सबसे बड़े शिकार
🔹 प्रदेश में बेरोज़गारी और विकराल होने का खतरा ODOP योजना पर सवाल
उत्तर प्रदेश सरकार की ODOP (वन डिस्ट्रिक्ट-वन प्रोडक्ट) योजना को लेकर बड़े-बड़े दावे किए गए थे। कहा गया था कि यह प्रदेश के पारंपरिक उत्पादों को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाएगी।
लेकिन जब संकट आया, तो यह योजना कहीं दिखाई नहीं दी। सवाल यह उठता है कि क्या ODOP केवल प्रदर्शनी और पोस्टरबाज़ी तक ही सीमित थी?
कारीगरों की दोहरी मार
यह संकट सिर्फ़ निर्यातकों तक सीमित नहीं। असली मार उन कारीगरों और मजदूरों पर पड़ रही है, जो महीनों तक मेहनत करके उत्पाद तैयार करते हैं।
बनारसी साड़ी बुनने वाला बुनकर
कन्नौज का इत्र बनाने वाला कारीगर
सहारनपुर का लकड़ी तराशने वाला शिल्पकार
गोरखपुर का टेराकोटा कलाकार
इनकी मेहनत का माल बिके बिना गोदामों में पड़ा है। पैसे न मिलने से रोज़मर्रा का खर्च तक चलाना मुश्किल हो रहा है।
समाधान की दिशा
इस संकट से बाहर निकलने के लिए सरकार के पास ठोस विकल्प हैं :
1. विशेष राहत पैकेज – पूँजी संकट से जूझ रहे निर्यातकों के लिए।
2. टैक्स और शुल्क में छूट – ODOP और अन्य उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए।
3. कूटनीतिक पहल – विदेशी देशों के साथ वार्ता कर टैरिफ़ संकट का समाधान।
4. कारीगर सहायता योजना – मजदूरों को सीधे नकद और रोज़गार गारंटी।
5. लॉजिस्टिक्स सपोर्ट – बंदरगाहों और शिपमेंट में फँसे माल को छुड़ाने की विशेष व्यवस्था।
सवाल सरकार से
क्या सरकार की जिम्मेदारी केवल चुनावी भाषणों और विज्ञापन तक सीमित रह गई है?
क्या यह वही समय नहीं जब उसे अपने उद्योगपतियों, कारीगरों और निर्यातकों के साथ मजबूती से खड़ा होना चाहिए था?
दरअसल, कमी कोष की नहीं, सोच की है।
निष्कर्ष
यह संकट केवल व्यापार या निर्यात का नहीं, बल्कि लाखों परिवारों की आजीविका और करोड़ों लोगों के भविष्य का सवाल है। अगर सरकार ने समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए तो उप्र का निर्यात उद्योग चौपट हो जाएगा और बेरोज़गारी का सैलाब और विकराल रूप ले लेगा।
आज आवश्यकता है कि समाज, उद्योग और निर्यातक एकजुट होकर अपनी आवाज़ बुलंद करें और सरकार को मजबूर करें कि वह इस "टेरिफ़ाइंग टैरिफ़ इमर्जेंसी" में अपने लोगों के साथ खड़ी हो।
✍️ लेखक : दुर्गेश यादव.!
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