बुधवार, 27 अगस्त 2025
आत्मनिर्भर भारत या अदानीनिर्भर भारत?
जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2020 में आत्मनिर्भर भारत का नारा दिया था, तब पूरे देश में आशा की एक नई लहर दौड़ी थी। कोरोना महामारी के कठिन समय में यह विचार लोगों को हिम्मत देने वाला साबित हुआ। लगा कि अब भारत अपनी आंतरिक शक्तियों पर भरोसा करेगा, विदेशी निर्भरता कम होगी और हर गाँव, हर कस्बे में रोजगार व उत्पादन के नए अवसर पैदा होंगे। “वोकल फॉर लोकल” का संदेश लोगों को यह विश्वास दिलाने वाला था कि सरकार अब सचमुच घरेलू उद्योगों, किसानों और छोटे कारोबारियों को मजबूती देने जा रही है।
लेकिन कुछ वर्षों में यह उम्मीद धीरे-धीरे संदेह और मोहभंग में बदलने लगी है। आत्मनिर्भर भारत का नारा जितना प्रभावशाली सुनाई देता है, उतनी ही गहरी उसकी वास्तविकता पर सवाल उठने लगे हैं।
स्वदेशी की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
भारत में स्वदेशी आंदोलन की जड़ें गहरी हैं। आज़ादी की लड़ाई में स्वदेशी महज एक नारा नहीं था, बल्कि आर्थिक स्वतंत्रता और आत्मसम्मान का प्रतीक था। महात्मा गांधी ने चरखे को अपनाकर यह संदेश दिया था कि असली स्वतंत्रता तभी संभव है जब हम अपने उत्पादन और अपनी आवश्यकताओं के लिए खुद पर निर्भर हों।
आजादी के बाद भी स्वदेशी की अवधारणा बार-बार चर्चा में आती रही है। लेकिन मौजूदा समय में यह शब्द एक नए अर्थ में इस्तेमाल हो रहा है। मंचों से आत्मनिर्भरता की बात तो होती है, पर नीति और व्यवहार में उसका असर कम दिखाई देता है।
बड़े उद्योग बनाम छोटे कारोबार
सरकार की नीतियाँ हाल के वर्षों में बड़े उद्योगपतियों को अधिक लाभ पहुँचाने वाली दिखाई देती हैं। अदानी-अंबानी जैसे चुनिंदा कारोबारी घराने अभूतपूर्व विस्तार कर रहे हैं। वहीं, छोटे और मझोले उद्योग, जो देश की अर्थव्यवस्था और रोजगार का बड़ा आधार हैं, लगातार संघर्ष कर रहे हैं।
यदि आत्मनिर्भर भारत का लक्ष्य सचमुच छोटे उद्योगों को सशक्त करना होता, तो उन्हें आसान कर्ज़, तकनीकी सहायता और बाज़ार की गारंटी दी जाती। कुटीर उद्योगों, हथकरघा, हस्तशिल्प और कृषि आधारित उद्यमों को संरक्षण मिलता। लेकिन नोटबंदी और जीएसटी जैसी नीतियों ने उलटे इन्हीं वर्गों को कमजोर कर दिया।
विरोधाभास स्पष्ट है
प्रधानमंत्री जी स्वदेशी और आत्मनिर्भरता का आह्वान करते हैं, लेकिन सत्ता से जुड़े वर्ग स्वयं विदेशी तकनीक, विदेशी पूंजी और विदेशी उत्पादों पर निर्भर रहते हैं। उदाहरण के लिए, बड़े उद्योग विदेशी वित्तीय संस्थानों से निवेश लेते हैं, अत्याधुनिक तकनीक आयात करते हैं और अपने विस्तार के लिए विदेशी कर्ज़ पर निर्भर हैं।
इस विरोधाभास से आम जनता में सवाल उठना स्वाभाविक है – यदि आत्मनिर्भरता वास्तव में सरकार की प्राथमिकता है तो यह केवल जनता से अपेक्षित क्यों है? सत्ता और उद्योगपति वर्ग के लिए विदेशी निर्भरता क्यों स्वीकृत है?
जनता की बढ़ती बेचैनी
भारत के ग्रामीण क्षेत्र, किसान और छोटे व्यापारी आज भी कठिनाइयों से जूझ रहे हैं। रोजगार के अवसर सीमित हैं, महंगाई लगातार बढ़ रही है और सरकारी नौकरियों के अवसर घटते जा रहे हैं। युवाओं का पलायन जारी है। यदि आत्मनिर्भर भारत का सपना साकार होता, तो शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि और रोजगार के क्षेत्र में ठोस सुधार दिखाई देते।
जनता धीरे-धीरे यह महसूस करने लगी है कि आत्मनिर्भरता का नारा वास्तविकता से अधिक प्रचार का हिस्सा है। छोटे और मझोले उद्योगों की स्थिति सुधरने के बजाय और बिगड़ती जा रही है।
आत्मनिर्भरता की असली परिभाषा
आत्मनिर्भरता का अर्थ केवल विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करना नहीं है। इसका वास्तविक अर्थ है –
1. स्थानीय उद्योगों को सशक्त करना,
2. किसानों को तकनीक और वित्तीय सहायता उपलब्ध कराना,
3. युवाओं के लिए स्वरोजगार और उद्यमिता को प्रोत्साहित करना,
4. शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था को मज़बूत करना,
5. तकनीकी अनुसंधान और नवाचार में निवेश करना।
यदि ये कदम उठाए जाते तो आत्मनिर्भर भारत नारे से आगे बढ़कर जमीनी हकीकत बन सकता था।
सवाल जिनका उत्तर ज़रूरी है
1. क्या आत्मनिर्भर भारत का सपना तभी पूरा होगा जब जनता विदेशी सामान छोड़े और बड़े उद्योगपति विदेशी पूंजी व तकनीक पर निर्भर बने रहें?
2. क्या सरकार ने छोटे उद्योगों और किसानों की बेहतरी के लिए उतने ही ठोस कदम उठाए हैं जितने बड़े उद्योगों के लिए?
3. क्या आत्मनिर्भर भारत का असली लाभ पूरे समाज को मिल रहा है या यह सीमित वर्ग के लिए अवसर का साधन बन चुका है?
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निष्कर्ष
आत्मनिर्भर भारत का विचार निस्संदेह समय की आवश्यकता है। यह देश को मजबूत बनाने का मार्ग है। लेकिन इसे केवल नारे और प्रचार तक सीमित रखना जनता के विश्वास के साथ अन्याय होगा।
प्रधानमंत्री जी यदि वास्तव में आत्मनिर्भर भारत का निर्माण करना चाहते हैं, तो उन्हें नीतियों में संतुलन लाना होगा। बड़े उद्योगों के साथ-साथ छोटे कारीगरों, किसानों और मझोले उद्यमियों को समान अवसर और संरक्षण देना होगा। तभी आत्मनिर्भर भारत का सपना साकार होगा और जनता का विश्वास कायम रहेगा।
वरना इतिहास यही कहेगा कि – “आत्मनिर्भर भारत” जनता के लिए नारा था और “अदानीनिर्भर भारत” सत्ता की वास्तविकता।
✍️लेखक – दुर्गेश यादव!
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