लोकतंत्र की हत्या पर कैसा जश्न?

लोकतंत्र की हत्या पर कैसा जश्न? जब लोकतंत्र की पवित्रता पर प्रश्नचिह्न लगने लगे, जब मतदाता की आवाज़ दबा दी जाए, जब चुनाव केवल एक दिखावा बनकर रह जाएँ, तब यह केवल एक दल की जीत नहीं, बल्कि संपूर्ण लोकतंत्र की हार होती है। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव का यह आरोप कि भाजपा वोटों से नहीं, बल्कि चुनावी तंत्र के दुरुपयोग से सत्ता में बनी हुई है, केवल एक राजनीतिक टिप्पणी नहीं, बल्कि एक गहरी सच्चाई है, जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता। क्या अब जनता का मत कोई मायने नहीं रखता? हर लोकतंत्र का मूल स्तंभ है—जनता का अधिकार, निष्पक्ष चुनाव, और प्रशासन की निष्पक्षता। लेकिन जब सत्ता की भूख इतनी बढ़ जाए कि लोकतंत्र केवल सत्ता हथियाने का माध्यम बन जाए, तब यह केवल एक सरकार का सवाल नहीं रह जाता, बल्कि पूरे देश के भविष्य का सवाल बन जाता है। अगर जनता का वोट पहले से ही बेमानी कर दिया जाए, अगर चुनावी प्रक्रिया महज़ एक औपचारिकता बन जाए, अगर जीत पहले से तय हो, तो फिर यह लोकतंत्र कहाँ रह गया? अखिलेश यादव का यह कहना कि “403 विधानसभाओं में यह चार सौ बीसी नहीं चलेगी” इस गहरी चिंता की ओर इशारा करता है कि कहीं हम लोकतंत्र के मूल्यों को धीरे-धीरे खत्म करने की ओर तो नहीं बढ़ रहे? प्रशासन की भूमिका: जब न्याय बिकने लगे, जो अधिकारी निष्पक्षता की शपथ लेते हैं, जो संविधान की रक्षा करने के लिए नियुक्त किए जाते हैं, अगर वही सत्ता के इशारे पर नाचने लगें, तो यह जनता के साथ सबसे बड़ा धोखा है। क्या वे भूल गए कि न तो सत्ता स्थायी है और न ही उनकी ताकत? आज जो अधिकारी चुनावी धांधलियों में शामिल होकर सत्ता की कठपुतली बने हुए हैं, उन्हें यह याद रखना चाहिए कि कल जब सत्ता बदलेगी, तो वे अकेले पड़ जाएंगे। इतिहास गवाह है कि जब-जब किसी सरकार ने तानाशाही रवैया अपनाया, जब-जब प्रशासन ने सत्ता के दबाव में अन्याय किया, तब-तब जनता ने उन्हें सबक सिखाया। आज जिन अधिकारियों ने सत्ता के इशारे पर लोकतंत्र का सौदा किया, कल वे ही अपने बच्चों और परिवार के सामने शर्मिंदगी की ज़िंदगी जीने को मजबूर होंगे। क्या यह जीत सच में जीत है? अगर भाजपा को अपनी जीत पर इतना भरोसा होता, तो उन्हें चुनावी तंत्र के दुरुपयोग की ज़रूरत क्यों पड़ती? अगर वे जनता का समर्थन खो चुके हैं, तो क्या सत्ता में बने रहने का कोई नैतिक अधिकार उनके पास बचता है? जो चुनाव निष्पक्ष नहीं, जो जीत जबरन हथियाई गई हो, जो परिणाम पहले से तय हों—वह जीत नहीं होती, वह लोकतंत्र की हत्या होती है। और जो लोग इस हत्या में शामिल हैं, वे चाहे जितना भी जश्न मना लें, इतिहास उन्हें कभी माफ़ नहीं करेगा। भविष्य किसका? लोकसभा चुनावों में अयोध्या में हुई पीडीए की सच्ची जीत इस विधानसभा की "झूठी जीत" पर हमेशा भारी पड़ेगी। यह सत्ता का नशा, यह प्रशासन की मिलीभगत, यह चुनावी घपलेबाजी सब क्षणिक है। पर जनता का विश्वास अमर है। जो लोग आज सत्ता के मद में चूर होकर लोकतंत्र का अपमान कर रहे हैं, वे भूल गए हैं कि समय सबसे बड़ा न्यायाधीश होता है। आज जो सत्ता में हैं, कल वे गुमनामी में खो जाएंगे। आज जो ताकतवर हैं, कल वे सबसे कमजोर साबित होंगे। आज जो जनता की आवाज़ दबा रहे हैं, कल वही जनता उन्हें नकार देगी। क्योंकि जनता की आवाज़ ही लोकतंत्र की असली ताकत है। और यह आवाज़ कभी नहीं मरेगी। (दुर्गेश यादव ✍️)

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