रविवार, 31 अगस्त 2025
चीन पर बढ़ती निर्भरता और भारतीय अर्थव्यवस्था का भविष्य
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने हाल ही में यह चिंता जताई कि भारत लगातार चीन के उत्पादों पर अधिक निर्भर होता जा रहा है। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर यही रफ्तार जारी रही, तो इसका असर न केवल भारत के औद्योगिक ढांचे पर पड़ेगा बल्कि देश की व्यापारिक स्थिति भी कमजोर हो जाएगी। अखिलेश यादव का तर्क है कि चीन पहले भारतीय बाज़ारों को सस्ते और बड़े पैमाने पर उपलब्ध अपने उत्पादों से भर देता है, जिससे घरेलू उद्योग धीरे-धीरे कमजोर हो जाते हैं। बाद में जब भारतीय कंपनियां प्रतिस्पर्धा खो बैठती हैं, तब चीन अपनी मर्जी से कीमतें तय कर बाजार पर एक तरह से नियंत्रण कर लेता है।
यह चिंता सिर्फ राजनीतिक बयान नहीं है, बल्कि भारत की अर्थव्यवस्था के सामने खड़े एक गहरे प्रश्न की ओर संकेत करती है। आज के दौर में "आत्मनिर्भर भारत" का नारा दिया जा रहा है, "मेक इन इंडिया" को बढ़ावा दिया जा रहा है और स्थानीय उद्योगों को प्रोत्साहित करने की नीतियां बनाई जा रही हैं। लेकिन जमीन पर सच्चाई कुछ और है। भारत का आयात-निर्यात संतुलन इस बात को साफ दिखाता है कि हम चीन पर भारी मात्रा में निर्भर बने हुए हैं।
भारत-चीन व्यापारिक तस्वीर
भारत और चीन के बीच व्यापारिक संबंधों को देखें तो पिछले एक दशक में इसमें लगातार बढ़ोतरी हुई है। भारत चीन से इलेक्ट्रॉनिक सामान, मोबाइल फोन, मशीनरी, खिलौने, कपड़े, औद्योगिक उपकरण और यहां तक कि त्योहारों में इस्तेमाल होने वाली सजावटी वस्तुएं तक आयात करता है।
2024 तक के आंकड़े बताते हैं कि भारत का चीन के साथ व्यापारिक घाटा 100 अरब डॉलर से अधिक हो चुका है। यानी भारत चीन से जितना माल खरीदता है, उसके मुकाबले चीन भारत से बहुत कम माल खरीदता है। यह असंतुलन लंबे समय में भारतीय उद्योग के लिए गंभीर खतरा है।
घरेलू उद्योग पर असर
चीन की ताकत सस्ते उत्पादन और बड़े पैमाने पर निर्माण क्षमता में है। वहां की कंपनियां कम लागत पर बड़े पैमाने पर उत्पाद तैयार करती हैं। इसका असर भारतीय छोटे और मध्यम उद्योगों (MSME सेक्टर) पर सीधा पड़ता है।
इलेक्ट्रॉनिक्स और मोबाइल सेक्टर : भारतीय कंपनियां यहां टिक ही नहीं पातीं।
त्योहार और सजावटी सामान : दिवाली की लाइटें, होली के रंग, राखियां और यहां तक कि गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियां तक चीन से आकर बाजार में छा जाती हैं।
मशीनरी और औद्योगिक उपकरण : छोटे उद्योगों को भी चीनी उपकरणों पर निर्भर होना पड़ता है।
इस निर्भरता से स्थानीय उत्पादन क्षमता कमजोर होती है। उद्योगपति और कारीगर धीरे-धीरे बाजार से बाहर होने लगते हैं, जिससे रोजगार पर भी सीधा असर पड़ता है।
रणनीतिक खतरे
यह मुद्दा सिर्फ आर्थिक नहीं बल्कि रणनीतिक भी है। चीन भारत का पड़ोसी और कभी-कभी प्रतिद्वंद्वी देश है। सीमा विवाद से लेकर अंतरराष्ट्रीय मंचों तक, दोनों देशों के बीच तनाव की स्थिति कई बार सामने आती रही है। ऐसे में अगर भारत की अर्थव्यवस्था चीन के सामानों पर ज्यादा निर्भर होती चली जाए तो यह भविष्य में दबाव का कारण बन सकता है।
अखिलेश यादव की चिंता यहीं पर अधिक प्रासंगिक हो जाती है। अगर चीन किसी दौर में कीमतें बढ़ा दे या किसी खास उत्पाद की सप्लाई रोक दे, तो भारत के उद्योग और बाजार हिल सकते हैं। उदाहरण के लिए, कोविड-19 महामारी के दौरान जब चीन से दवाइयों और मेडिकल उपकरणों की सप्लाई प्रभावित हुई, तब भारत को बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।
क्या है समाधान?
घरेलू उद्योगों को मजबूत करना
छोटे और मध्यम उद्योगों को आसान ऋण, तकनीकी सहायता और आधुनिक मशीनों तक पहुंच दिलाना जरूरी है।
"मेक इन इंडिया" अभियान को सिर्फ नारेबाजी से आगे बढ़ाकर ज़मीनी स्तर पर लागू करना होगा।
टेक्नोलॉजी में आत्मनिर्भरता
इलेक्ट्रॉनिक्स, सेमीकंडक्टर और मोबाइल निर्माण जैसे क्षेत्रों में भारत को अपनी क्षमता विकसित करनी होगी।
सरकार ने सेमीकंडक्टर निर्माण के लिए योजनाएं शुरू की हैं, लेकिन उन्हें तेज़ी और पारदर्शिता के साथ लागू करना जरूरी है।
स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा
त्योहारों और दैनिक उपयोग की वस्तुओं में "स्वदेशी" उत्पादों को प्राथमिकता देनी होगी।
इसके लिए उपभोक्ताओं की सोच भी बदलनी होगी। जब तक लोग सस्ते चीनी सामान को प्राथमिकता देंगे, तब तक स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देना मुश्किल होगा।
निर्यात बढ़ाना
भारत को अपने निर्यात के क्षेत्र बढ़ाने होंगे। टेक्सटाइल, फार्मा, आईटी और कृषि उत्पादों में भारत की बड़ी क्षमता है।
निर्यात बढ़ाकर ही व्यापार घाटे को संतुलित किया जा सकता है।
राजनीति और अर्थशास्त्र का संगम
अखिलेश यादव का बयान केवल राजनीतिक विरोध के लिए नहीं माना जाना चाहिए। यह एक गंभीर आर्थिक चेतावनी है। आज भले ही भारतीय बाजार सस्ते चीनी सामान से भरे हों और उपभोक्ता इसे "किफायती विकल्प" मानते हों, लेकिन दीर्घकालिक दृष्टि से यह आत्मनिर्भर भारत की अवधारणा के खिलाफ है।
राजनीतिक दलों को भी यह समझना होगा कि विदेशी सामानों के खिलाफ केवल बयानबाजी या बहिष्कार का नारा पर्याप्त नहीं है। इसके लिए ठोस नीतियां, अनुसंधान में निवेश, नवाचार को प्रोत्साहन और स्थानीय उद्योगों को सुरक्षा कवच देना आवश्यक है।
निष्कर्ष
भारत का भविष्य इस पर निर्भर करेगा कि वह चीन पर अपनी निर्भरता कैसे घटाता है और किस हद तक अपने उद्योगों को प्रतिस्पर्धी बनाता है। अखिलेश यादव की यह चिंता समयानुकूल है और इसे केवल विपक्ष का बयान कहकर नज़रअंदाज़ करना गलत होगा।
अगर भारत वास्तव में आत्मनिर्भर बनना चाहता है, तो उसे घरेलू उत्पादन, तकनीकी विकास और स्थानीय उद्यमिता को प्राथमिकता देनी होगी। अन्यथा चीन का वह मॉडल हावी रहेगा, जिसमें पहले वह बाजार पर कब्जा करता है और बाद में अपनी शर्तों पर सौदे करवाता है।
आज जरूरत इस बात की है कि सरकार, उद्योग और उपभोक्ता – तीनों मिलकर स्थानीय उत्पादों और उद्योगों को मजबूत करें। तभी भारत आर्थिक रूप से सुरक्षित और स्वतंत्र बन सकेगा।
✍️लेखक : दुर्गेश यादव!
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