सोमवार, 1 सितंबर 2025

भारत-चीन संबंध: व्यापार, विश्वास और सीमा विवादों का विश्लेषण

लेखक: दुर्गेश यादव आज की वैश्विक राजनीति में भारत और चीन के बीच संबंध एक जटिल पहेली की तरह हैं। दोनों देश एशिया के दो सबसे बड़े लोकतंत्र और आर्थिक शक्ति हैं, लेकिन सीमा विवाद, व्यापार असंतुलन और भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा इनके बीच तनाव पैदा करती रहती है। 2025 में, जब दुनिया अमेरिकी टैरिफ्स और वैश्विक मंदी से जूझ रही है, भारत और चीन के बीच व्यापारिक संबंधों में कुछ सुधार के संकेत दिख रहे हैं, लेकिन विश्वास की कमी और ऐतिहासिक घटनाएं इनकी दोस्ती पर सवाल उठाती हैं। क्या भारत-चीन व्यापार से वास्तव में दोनों को फायदा हो रहा है? क्या दोनों देशों की दोस्ती पर भरोसा किया जा सकता है? क्या चीन ने भारत-पाक युद्धों में पाकिस्तान का साथ दिया था? गलवान घाटी में हालात सुधरे हैं या नहीं? और क्या चीन कभी भारत के क्षेत्रों से कब्जा हटा लेगा? इन सभी मुद्दों पर एक तार्किक विश्लेषण आवश्यक है। यह लेख इन सवालों का सरल भाषा में उत्तर देगा, तथ्यों और हालिया घटनाओं के आधार पर। भारत-चीन व्यापार: असंतुलन का बोझ भारत पर भारत और चीन के बीच व्यापारिक संबंध तेजी से बढ़े हैं। 2024-25 में द्विपक्षीय व्यापार 113.5 अरब डॉलर तक पहुंच गया, जिसमें भारत का निर्यात 14.25 अरब डॉलर और आयात 113.5 अरब डॉलर रहा। चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है, लेकिन यह संबंध असमान है। भारत का व्यापार घाटा 99.2 अरब डॉलर हो गया, जो पिछले साल के 85.1 अरब डॉलर से अधिक है। भारत मुख्य रूप से कच्चे माल जैसे लौह अयस्क, झींगा और कास्टर ऑयल निर्यात करता है, जबकि चीन से इलेक्ट्रॉनिक्स, मशीनरी, सोलर सेल्स और दवाओं के कच्चे माल आयात होते हैं। इस व्यापार से चीन को अधिक फायदा हो रहा है। चीन भारत को कच्चा माल बेचकर मूल्यवर्धन करता है और भारत की अर्थव्यवस्था पर निर्भरता बढ़ाता है। उदाहरणस्वरूप, भारत की 82.7 प्रतिशत सोलर सेल्स और 75.2 प्रतिशत लिथियम-आयन बैटरी चीन से आती हैं। अमेरिकी टैरिफ्स के कारण 2025 में भारत-चीन व्यापार बढ़ा है, क्योंकि दोनों देश अमेरिकी दबाव से बचने के लिए एक-दूसरे की ओर रुख कर रहे हैं। हाल ही में, सीधे उड़ानें बहाल हुईं और सीमा व्यापार फिर शुरू हुआ, जैसे लिपुलेख, शिपकी ला और नाथू ला पास पर। लेकिन भारत के लिए यह फायदेमंद नहीं। व्यापार घाटा भारत की अर्थव्यवस्था को कमजोर करता है और चीन पर निर्भरता बढ़ाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि भारत को 'चाइना प्लस वन' रणनीति अपनानी चाहिए, जहां विदेशी निवेश को विविधीकृत किया जाए। 2025 के बजट में भारत ने रिसर्च एंड डेवलपमेंट (आरएंडडी) और उत्पादन लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआई) योजना को मजबूत किया है, ताकि आयात पर निर्भरता कम हो। फिर भी, चीन के टैरिफ बैरियर जैसे कृषि उत्पादों पर 5-25 प्रतिशत शुल्क भारत के निर्यात को रोकते हैं। कुल मिलाकर, व्यापार से चीन को आर्थिक लाभ मिल रहा है, जबकि भारत घाटे का शिकार हो रहा है। भारत को संतुलित व्यापार के लिए कूटनीतिक प्रयास तेज करने होंगे। भारत-चीन दोस्ती: विश्वास का संकट क्या भारत और चीन की दोस्ती पर भरोसा किया जा सकता है? इतिहास और वर्तमान घटनाएं कहती हैं कि नहीं। दोनों देशों के बीच 1962 का युद्ध, 2017 का डोकलाम स्टैंडऑफ और 2020 का गलवान संघर्ष विश्वास की कमी को दर्शाते हैं। 2025 में, अमेरिकी टैरिफ्स के कारण दोनों देश करीब आए हैं। प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग की अक्टूबर 2024 की ब्रिक्स बैठक में 'सकारात्मक दिशा' की बात हुई, और सीधे उड़ानें बहाल हुईं। लेकिन यह सतही है। चीन भारत को 'साझेदार' कहता है, लेकिन उसके कार्य उलटे हैं। चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) भारत-प्रशासित कश्मीर से गुजरता है, जो भारत की संप्रभुता का उल्लंघन है। चीन ने अरुणाचल प्रदेश के 27 स्थानों के नाम बदले, जो भारत का अभिन्न अंग है। विशेषज्ञ कहते हैं कि चीन की 'सालामी स्लाइसिंग' रणनीति से वह धीरे-धीरे क्षेत्र हथिया रहा है। 2025 में, स्कॉ समिट में मोदी और शी की मुलाकात हुई, लेकिन सीमा पर 50,000 सैनिक अभी भी तैनात हैं। भारत को चीन पर भरोसा नहीं करना चाहिए। दोनों की वैश्विक महत्वाकांक्षाएं टकराती हैं – भारत क्वाड और इंडो-पैसिफिक में अमेरिका के साथ है, जबकि चीन बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) से प्रभाव बढ़ा रहा है। दोस्ती संभव है, लेकिन केवल यदि चीन सीमा विवाद सुलझाए। फिलहाल, सतर्कता आवश्यक है। ## भारत-पाक युद्धों में चीन का साथ: पाकिस्तान का 'सबसे अच्छा दोस्त' क्या चीन ने भारत-पाक युद्धों में पाकिस्तान का साथ नहीं दिया? इतिहास हां कहता है। 1965 के युद्ध में, चीन ने भारत को सिक्किम सीमा पर सैन्य संरचनाएं हटाने का अल्टीमेटम दिया, जिससे भारत की सेना पश्चिमी मोर्चे पर कमजोर हुई। चीन ने पाकिस्तान को 250 मिलियन डॉलर का सैन्य सहायता दिया। 1971 के युद्ध में, चीन ने संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान का समर्थन किया और पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में पाकिस्तानी सेना की निकासी के लिए जहाज भेजे। हालांकि सीधे हस्तक्षेप नहीं किया, लेकिन हथियार और कूटनीतिक सहायता दी। 2025 में भी, चीन पाकिस्तान का 'सबसे अच्छा दोस्त' है। सीपीईसी के तहत 62 अरब डॉलर का निवेश, जिसमें ग्वादर बंदरगाह शामिल है, पाकिस्तान को मजबूत करता है। हाल के भारत-पाक तनाव में, चीन ने पाकिस्तान को एचक्यू-9 मिसाइलें और जे-10 विमान दिए। चीन भारत को कमजोर करने के लिए पाकिस्तान का उपयोग करता है। यह 'स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स' रणनीति का हिस्सा है, जहां पाकिस्तान चीन का हथियार है। भारत को सतर्क रहना होगा। गलवान घाटी: हालात सुधरे, लेकिन पूरी तरह नहीं 2020 का गलवान संघर्ष भारत-चीन संबंधों का टर्निंग पॉइंट था। 15 जून को, 20 भारतीय सैनिक शहीद हुए, जबकि चीन ने 4 की मौत मानी (अमेरिकी खुफिया के अनुसार 35)। यह 45 वर्षों में पहली घातक टकराव था। संघर्ष के बाद, दोनों पक्षों ने 50,000 सैनिक तैनात किए। 2025 तक, हालात सुधरे हैं। 2024 के अक्टूबर समझौते से डिसएंगेजमेंट हुआ – पांगोंग त्सो, गलवान और डेपसांग से सैनिक हटे। अब पैट्रोलिंग बहाल है। लेकिन डे-इंडक्शन (सैनिकों की वापसी) नहीं हुआ। 2025 में, स्कॉ समिट में मोदी-शी मुलाकात से सकारात्मक संकेत मिले, लेकिन 100,000 सैनिक अभी भी हैं। भारत ने बुनियादी ढांचा मजबूत किया, जैसे डीएसडीबीओ सड़क। सुधार हुआ, लेकिन पूर्ण सामान्य नहीं। तनाव बरकरार है। चीन का कब्जा: हटेगा या नहीं? क्या चीन भारत के क्षेत्रों से कब्जा हटा लेगा? संभावना कम है। चीन ने 38,000 वर्ग किमी अक्साई चिन पर कब्जा रखा है, जो लद्दाख का हिस्सा है। 2020 के बाद, डेपसांग और डेमचोक में 2,000 वर्ग किमी पर नियंत्रण बढ़ा। 2023 में, चीन ने हॉटन में दो नए काउंटी बनाए, जो लद्दाख में आते हैं। भारत ने विरोध किया, लेकिन चीन ने नामकरण जारी रखा। चीन की 'ग्रे जोन' रणनीति से वह धीरे-धीरे क्षेत्र हथिया रहा है। 2025 में, डिसएंगेजमेंट से कुछ राहत मिली, लेकिन पूर्ण वापसी नहीं। विशेषज्ञ कहते हैं कि चीन कभी नहीं हटेगा, जब तक भारत मजबूत न हो। भारत को सैन्य आधुनिकीकरण और कूटनीति से दबाव बनाना होगा। निष्कर्ष: सतर्कता और संतुलन की आवश्यकता भारत-चीन संबंधों में व्यापार असंतुलन, ऐतिहासिक अविश्वास और सीमा विवाद चुनौतियां हैं। व्यापार से चीन लाभान्वित हो रहा, जबकि भारत घाटे में। दोस्ती संभव, लेकिन विश्वास की कमी बाधा। चीन ने पाकिस्तान का साथ दिया, गलवान में सुधार हुआ लेकिन अपूर्ण, और कब्जा हटाने की उम्मीद कम। भारत को सैन्य शक्ति, आर्थिक स्वावलंबन और अंतरराष्ट्रीय गठबंधनों से मजबूत होना होगा। 2025 में, दोनों देशों को शांति के लिए प्रयास करने चाहिए, लेकिन भारत को सतर्क रहना होगा। केवल संतुलित दृष्टिकोण से ही स्थिरता आएगी।

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